यहाँ कुछ प्रश्न हैं जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जमानत के नियम और इसके अभ्यास के बारे में अक्सर पूछे जाते हैं।
माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष नियमित जमानत याचिका कब दायर की जा सकती है?
जब जमानत प्रार्थना पत्र को मजिस्ट्रेट द्वारा खारिज कर दिया जाता है, तो अभियुक्त सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय के समक्ष जमानत याचिका दायर कर सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत जमानत देने के लिए सत्र न्यायालय और माननीय उच्च न्यायालय को समवर्ती क्षेत्राधिकार प्रदान करती है। हालाँकि, सामान्य रूप से ऐसा नहीं किया जाता है । जब जमानत को मजिस्ट्रेट द्वारा खारिज कर दिया जाता है, तो जमानत की अर्जी सत्र न्यायालय के समक्ष दायर की जाती है और यदि सत्र न्यायालय जमानत को खारिज कर देता है तो माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष जमानत की अर्जी दायर की जाती है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष जमानत याचिका दाखिल करने की प्रक्रिया क्या है?
जब जमानत याचिका को सत्र न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया जाता है, तो आरोपी माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष जमानत याचिका दायर कर सकते हैं। आरोपी के पैरोकार को जमानत अस्वीकृति आदेश की नि:शुल्क प्रतिलिपि, प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रमाणित प्रति और केस डायरी सहित अन्य संबंधित दस्तावेजों के साथ इलाहाबाद आना पड़ता है। यदि चार्ज-शीट फाइल की गई है, तो चार्ज-शीट की प्रमाणित प्रति भी आवश्यक है। जमानत की अर्जी की प्रति माननीय न्यायालय के समक्ष दाखिल होने से दो दिन पहले सरकारी अधिवक्ता के कार्यालय में दी जाती है। सामान्य रूप से माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जमानत आवेदन पर विचार करने में सात दिनों का समय लग जाता है|
यदि माननीय न्यायालय द्वारा जमानत के मामलों में सरकारी अधिवक्ता से काउंटर एफिडेविट (CA) फाइल करने के लिए कहा है तो क्या होता है ?
आम तौर पर, सुनवाई की पहली तारीख को जमानत दी जाती है, हालांकि, यदि पूरे दस्तावेज रिकॉर्ड पर उपलब्ध नहीं हैं, या यदि आवेदक द्वारा जमानत की अर्जी के साथ पूरे दस्तावेज संलग्न किये बिना ही जमानत की मांग की गई है, और आरोप प्रकृति में बहुत गंभीर हैं, तो ऐसी परिस्थिति में ही माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय प्रतिशपथ पत्र (Counter Affidavit ) के लिए सरकारी वकील को सामान्य रूप से चार सप्ताह का समय प्रदान करता है। यदि प्रतिशपथ पत्र (Counter Affidavit ) के लिए समय प्रदान किया जाता है, तो प्रतिशपथ पत्र (Counter Affidavit ) प्राप्त होने के बाद जमानत याचिका पर निर्णय लिया जाता है और इसमें लगभग दो महीने का समय लगता है।
जमानत याचिका में क्या शामिल होना चाहिए?
जमानत याचिका में निम्न तथ्यों का उल्लेख करते हुए जमानत याचिका का मसौदा तैयार किया जाना चाहिए –
- केस क्राइम नंबर
- भारतीय दंड संहिता की धाराएँ जिसमें अभियुक्त / आवेदक का चालान किया गया है।
- पुलिस स्टेशन का नाम जहां प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई है।
- जिले का नाम जहां प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई है।
- आवेदक / अभियुक्त के आपराधिक इतिहास का स्पष्टीकरण ठीक से किया जाना चाहिए |
- इस आशय की अंडरटेकिंग कि यदि आवेदक को जमानत पर रिहा कर दिया जाता है, तो वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा और वह गवाहों को धमकाएगा नहीं।
- इस आशय की अंडरटेकिंग कि यदि आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाता है वह सक्षम अदालत के समक्ष पर्याप्त बंधपत्र दायर करेगा ।
जमानत देते समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कौन से कारकों पर विचार करते हैं?
जमानत देते समय, अन्य परिस्थितियों के अतिरिक्त ,सामान्य रूप से माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है –
- क्या आरोपी के विरुद्ध प्रथम दृष्टया यह विश्वास करने का उचित आधार है की आरोपी ने ही उक्त अपराध कारित किया है ?
- आरोप की प्रकृति और गंभीरता।
- सजा की स्थिति में सजा की गंभीरता।
- जमानत पर रिहा होने पर आरोपी के फरार होने या भागने का खतरा।
- चरित्र, व्यवहार, साधन, स्थिति और अभियुक्त के पक्ष विपक्ष में तर्क ।
- अपराध की पुनरावृत्ति संभावना।
- गवाहों के प्रभावित होने की उचित आशंका; तथा
- जमानत देने से न्याय का गला घोंट दिये जाने का खतरा।
हत्या के आरोप में शामिल आपराधिक मामलों में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देते समय कौन से कारक संज्ञान में लिए जाते हैं ?
माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा हत्या के आरोपों के मामलों में जमानत देते समय जिन कारकों पर विचार किया जाता है, वे हैं घटना का समय, प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में देरी, प्रथम सूचना रिपोर्ट में आरोप की प्रकृति, अभियुक्त द्वारा प्रयुक्त हथियार, चोटों की प्रकृति, चश्मदीद गवाह, अभियुक्तों का पूर्व का अपराधिक इतिहास , निरोध की अवधि और जांच या परीक्षण का चरण आदि।
डकैती के आरोप में शामिल आपराधिक मामलों में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देते समय कौन से कारक संज्ञान में लिए जाते हैं ?
आजकल डकैती के मामले बहुत कम हैं। हालाँकि, यदि किसी व्यक्ति पर डकैती का आरोप है, तो वह जमानत की अर्जी दाखिल कर सकता है, जिस पर माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखते हुए विचार किया जा सकता है:
- · प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में देरी।
- · प्रथम सूचना रिपोर्ट में आरोपी का नाम है या नहीं।
- · क्या अभियुक्तों की पहचान टेस्ट पहचान परेड (यदि कोई हो) में गवाहों द्वारा की गई है,
- · आरोपी के कब्जे से कोई लूट का माल बरामद हुआ है या नहीं।
- · आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास रहा है या नहीं।
- · आरोपियों को हिरासत में व्यतीत अवधि।
- · जाँच या परीक्षण का चरण।
बलात्कार के आरोप में शामिल आपराधिक मामलों में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देते समय कौन से कारक संज्ञान में लिए जाते हैं ?
बलात्कार एक बहुत गंभीर अपराध है, हालांकि, आजकल इतर कारणों से झूठे मामलों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है। कभी-कभी लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ या दुश्मनी को निपटाने के लिए, किसी भी अस्थिर चरित्र की महिला के माध्यम से झूठे आरोप लगाते हैं। बलात्कार के मामलों में, जमानत देते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है-
- · प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में देरी।
- · पीड़िता की उम्र।
- · बाहरी और आंतरिक चोटों की प्रकृति, यदि कोई हो।
- · पीडि़ता का पूर्ववृत्त ।
- · आरोपी का आपराधिक इतिहास।
- · आरोपियों को हिरासत में लेने की अवधि।
- · प्रत्यक्षदर्शी गवाह , यदि कोई हो।
- · कथित अपराध करने में शामिल आरोपियों की संख्या यानि कि यह सामूहिक बलात्कार का मामला था या नहीं।
- · पीड़िता सहमति वाली पार्टी थी या नहीं।
- · क्या पीड़िता और आरोपी के परिवार के बीच कोई पिछली दुश्मनी थी।
धोखाधड़ी के आरोप में शामिल आपराधिक मामलों में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देते समय कौन से कारक संज्ञान में लिए जाते हैं ?
धोखाधड़ी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। आम तौर पर, इस तरह का अपराध सफेदपोश अपराधियों द्वारा किया जाता है। आजकल अदालतें धोखाधड़ी और जालसाजी के आरोपियों को जमानत देने में जल्दबाजी नहीं करती हैं। हालांकि, आम तौर पर जमानत देते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है:
- · प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में विलंब, यदि कोई हो,
- · क्या आरोपी और पीड़ित के बीच कोई सिविल विवाद है,
- · आरोपों की प्रकृति,
- · शामिल राशि,
- · प्रथम सूचना रिपोर्ट में नामित अभियुक्तों की विशिष्ट भूमिका,
- · जांच के दौरान जांच अधिकारी द्वारा एकत्रित साक्ष्य की प्रकृति,
- · आरोपी को हिरासत में लेने की अवधि,
- · आरोपी का आपराधिक पूर्ववृत्त।
भ्रष्टाचार के आरोप वाले आपराधिक मामलों में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा जमानत देते समय कौन से कारक संज्ञान में लिए जाते हैं ?
भ्रष्टाचार की जड़ें हमारे समाज में बहुत गहरी हैं। वर्तमान में, लोक सेवकों ने भ्रष्ट तरीकों द्वारा धन का लाभ उठाया है। हालांकि, यह निर्दोष, ईमानदार, और मेहनती लोक सेवकों के विरुद्ध एक व्यक्तिगत स्वार्थ साधने का उपकरण भी बन गया है। भ्रष्टाचार के मामलों में जमानत के लिए अलग-अलग अदालतों को क्षेत्राधिकार है। भ्रष्टाचार के मामलों के आरोपियों को जमानत देते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है:
- · प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में विलंब, यदि कोई हो, तो।
- · राशि, यदि कोई हो, जो आरोपी के कब्जे से बरामद हुई हो ।
- · प्रथम सूचना रिपोर्ट में आरोपी की विशिष्ट भूमिका।
- · जांच के दौरान जांच अधिकारी द्वारा एकत्रित साक्ष्य की प्रकृति।
- · आरोपियों को हिरासत में लेने की अवधि।
- · आरोपी का आपराधिक पूर्ववृत्त ।
- · प्रत्यक्षदर्शी गवाह , यदि कोई हो।
- · विभाग में अभियुक्त की सामान्य प्रतिष्ठा।
- · आरोपी की कैरेक्टर रोल एंट्री।
- · झूठे निहितार्थ के बारे में बचाव के आधार ।
एन.डी.पी.एस. मामलों में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय जमानत देते समय कौन से कारकों पर विचार करती है ?
उत्तर प्रदेश में अन्य राज्यों की तुलना में नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 के तहत मामलों की संख्या बहुत अधिक नहीं है। एन.डी.पी.एस. में जमानत देते समय माननीय उच्च न्यायलय द्वारा निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है:
- प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में विलंब, यदि कोई हो,
- क्या निषिद्ध वस्तु बरामद की गयी है,
- बरामद निषिद्ध वस्तु वाणिज्यिक मात्रा से नीचे है या व्यावसायिक मात्रा से ऊपर है,
- क्या निषिद्ध वस्तु आरोपियों के कब्जे से बरामद की गयी है या आरोपियों के बताने पर किसी अन्य स्थान से बरामद की गयी है,
- क्या राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति में तलाशी और बरामदगी की गई है,
- तलाशी और बरामदगी करते समय अधिनियम के तहत निहित अनिवार्य प्रावधानों का अनुपालन किया गया है या नहीं,
- क्या अभियुक्त का समान प्रकृति के मामलों का कोई आपराधिक इतिहास है या नहीं,
- कारगार में निरुद्ध किये जाने की अवधि,
- बरामदगी का पब्लिक गवाह, यदि कोई हो,
- बरामदगी की सामग्री पर फोरेंसिक विशेषज्ञ की रिपोर्ट।